मुझे ऊँचे तक पहुँचना था ।
सैंकङो सीढियाँ चढी
हजारों मुखौटे बदले मैनें
शीर्ष पर पहुँचने तक मेरा असली चेहरा लुप्त हो चुका था
और हजारों मुखौटे मिल कर उत्सव मना रहे थे
मेरे शीर्षासीन होने का !!
मुझे ऊँचे तक पहुँचना था ।
सैंकङो सीढियाँ चढी
हजारों मुखौटे बदले मैनें
शीर्ष पर पहुँचने तक मेरा असली चेहरा लुप्त हो चुका था
और हजारों मुखौटे मिल कर उत्सव मना रहे थे
मेरे शीर्षासीन होने का !!
रात घनी और काली है
सूरज निगलने वाली है
तुम दिये से देहरी रोशन रखना
यहाँ सन्नाटो का बोझ पङा है
मुर्द सा होकर तन अकङा है
तुम जीवन सी लचक बनाये रखना
गर्दिशो के साये
सभी ओर छाये
उम्मीदों की नैया
भंवर में डगमगाये
तुम आशाओ की पतवार ले आगे बढना
उलट चुकी इस सृष्टि में
आकाश जहां पृथ्वी हुआ है
और पृथ्वी ने आकाश को
विस्थापित किया है
वृक्ष पत्तों से बढने लगें हैं
जङों पर फल-फूल उगने लगें है
उथले-पुथले से ब्रम्हाण्ड में
हम वहीं टिके हैं
अपने होने का आशय खोजते ।
1)
कुछ बिसरी बातों से भरा
खालीपन मेरा...
2)
बस और आंसू मत बहाना
"कविता"
कागज हद से भीग गया है
पिघल जायेगा
और तुम फिर रह जाओगी
अनकही
अनसुनी
3)
कुछ नहीं बोलूगीं
ना ही कुछ तौलूगी
बस तुम्हे निहारूंगी चुप सी
मैं नीन्द बन जाऊगीं तुम्हारी
अब तो
आंखो में आने दो
4)
लाख इल्जाम बांटते फिरते हो
हर किसी को भी
कभी आईने में दिखा शख्स गुनेहगार नजर आया है?
5)
जरा सा बचपना संभाल के रखना
फिर खेलने के काम आयेगा
मिट्टी में
जब राख हो उससे मिलने जायेंगे हम
6)
चलो बैठ जायें यूं ही
सब दुनिया बिसराकर कहीं
बिजली के तार पर बैठा
निश्चिन्त सा पंछी जैसे
7)
तुम्हारी मुट्ठी में कैद धूल हूँ
जिसे तुम
बहा रहे हो हवा मेँ
शैनैः शैनैः
8)
जैसा हम चाहेंगें , बन जायेंगे वैसे ही
अपने अपने विश्वकर्मा हैं सब
9)
ये काया तेरी मेरी
जोगन कोई
बदलेगी अपना ठिकाना
10)
नंगे पैर गर्म रेत पर चलो कभी
झुलसे कदम आगे ना बढ पायेंगें
और पगों के भीतर जाती आग रुकने भी न देगी
अब समझे हो क्या हमारी मनोदशा तुम ?
11)
तुझे रुबरु कराने मुझ से
शब्द बैचेन हुये हैं
उल्टी कलम से लिख रही हू
कागज खुद स्याही बन बैठे हैं
12)
साजिशे हैं
अंगीठी में सुलगती आग सी
मैं बरसाकर पानी की धारा
समन्दर कर दूंगी ये लाक्षागृह...
13)
रात यादों की माला पहन चली
मुझ तक आ टूटी
एक एक मोती बिखरा था
मैने फिर से पिरोया
14)
बस अब तुम आ ही जाओ
और मार डालो
ये आधी जिन्दगी अच्छी नहीं लगती अब ।
15)
सुख पानी है
बह जाता है पता नहीं चलता
दुख पत्थर है
उगता है
पर्बत बन जाता है
16)
कभी ठोस
कभी तरल
कभी वाष्प
हम में ही है सारी अवस्थाएं
सकल पदार्थ हम ही हैं
17)
कुचल आओ पहली कोंपल
जो फूटी थी प्रेम में
मेरा हृदय कुचलने से
प्रेम ना मरेगा ।
18)
आधे ही रहो
अधूरे से
अधखिले पुष्प से
अधूरे खत से
आधे चान्द से ।
पूर्णता तो अन्त है ।
19)
धूप में सुखाने को छोङे हैं
कुछ आंसू
तार पर डालकर
और बरसात कि
ख्वाहिश भी की है ।
अजब मौसम है
मन मेरे तेरा ।
20)
भीतर
अग्निबाण छूटटे हैं
दावानाल है
भीषण द्वन्द है
बाहर
मौन है
शीतलता है
मैं पृथ्वी सी
पृथ्वी मुझ सी
21)
सत्य तो भ्रम है
झूठ नेत्रहीन है
अर्धसत्य साम्राज्य विस्तार कर रहा है
घूर रहा है सच-झूठ को
परास्त किये
विजयी मुस्कान लिये
"घातक अर्धसत्य"
22)
मुझमें पङी दरारें
सकेंत हैँ
नमी की
हलचल की
जीवन की
क्या हुआ गर दीवार हूं मैं
23)
उससे बात करने के लिए लफ्जों की जरुरत कहां
मेरी पहली धङकन से ही जो मेरा जीवन समझ गई थी
#Maa
24)
भटकती फिरती है रेत
दर-बदर...
प्रेम की तलाश
खत्म होती है
जब
बादल बरस कर
भिगो देता है
मन उसका
तृप्त कर देता है
25)
मैं धूप लपेटने की कोशिश करती
बदली हूं इक
सूरज गीला कर जाऊंगी
देख लेना
26)
जितना तुममें खोकर
लीन होकर
तुम्हारा रहस्य समझना चाहा
तुम उतना ही
मुक्त करते गये मुझे ।
ईश्वर हुये हो क्या मेरे ?
27)
खोखली नींव हो गई हूं तेरे बिना
खयालों की माटी धसेगी मुझमें
मैं कुछ नहीं बस रह जाऊगी
तेरी यादों के मलबे का ढेर बनकर
28)
इतने जटिल ना हुये होते तुम
जहां तहां उलझे पङे पतंग के मांझे से
तुम्हारा मन
मस्तिष्क
दोनों पढना मुश्किल है
उफ्फ
अनपढ हूं मैं
29)
उत्तर कुलबुला रहें हैं
प्रश्न मर चुके हैं
भटकते रहेंगे अब जवाब सब
सवाल बनकर
30)
खटपट का शोर है
पटक पटक कर खेल रहा है
खिलौने से कहीं कोई
रात गूंगी है
निर्जीव बोल रहे हैं
31)
"सत्य" कटे-फटे पैरों
बेतरतीब बालों सा
अन्धेरा है कोई
रोशनी स्वप्न है
और ये पक्तियां
"अवसाद" की हैं
32)
सूरज को अंगीठी में रखकर
आग लगा देना
बची हुई पीली भस्म
आसमान पर छिङक कर
तारे बना देना
मुझे तो ये रात
ये अन्धेरा
भाता है बहुत
33)
निगलता गया है मुझे
निष्प्राण किया है
दम घोटूं
तू / तेरा प्रेम
अजगर सा
34)
मौन का दुशाला ओढे
रात चली
सुलझी सी उलझने लेकर
35)
बन्द आंखे ये मेरी
तेरी यादों के खतों का लिफाफा ....
36)
जमीं पर पङें हैं तो पत्थर-कंकङ
और आसमान में बिखरे तो सितारे हो गये ...
37)
जब मिलो
मेरी आंखो का समन्दर समेट लेना
बुहार लेना मेरी यादों की जमीन
और तन्हाईयां अंजुलि में भर लेना
38)
मारे मारे से ना फिरो
शब्दों
कुछ देर पन्नों पर सुस्ता लो
चाहो तो ठहर जाना उम्र भर
नहीं तो आगे बढ जाना
नई कहानी बनाने को
39)
खट्टी-मीठी अम्बिया तोङ लाना
बचपन तुम फिर से लौट आना ....
40)
आंधियां झगङती है
झंझावातों से लङती हूँ
तेरी यादों की धूल रोज
समेटती हूँ
मिट्टी का टीला बन गया है
मन मेरा
कन्चों में
माचिस की खाली डिब्बियों मे
पन्चर हुये टायर में
टूटी चूङियों में
गुड्डे गुङियों में
रखा छोङा है
ं
चलो
पुराने काठ के बक्से से वो
बचपन निकाले ...
छोटे हो चुके स्वेटर
सन्तरे की गोलियां
लुका छिपी
पकङा पकङी
गांव की गर्मी वाली छुट्टियां
ं
बनाये थे जो घरौन्दे
फिर रेत हुये थे जो
आ मिट्टी से उन्हे वापिस लिवा लें ...
फिर से बचपन निकालें ...
वो वक्त भी खुद से हारा था
उस दिन बंटवारा था ...
जलती आग का उठता हुआ धुंआ था
राम की खाला, रहीम की माँ का कत्ल हुआ था...
सरसों के खेतों में लाशों की फसल उगी थी
ईमान की गर्दन हैवान के आगे झुकी थी ...
बांट डाले घर-बार
गम-त्यौहार
बन्द कर डाले वो द्वार,
जिनपर आने जाने की कहानियां लिखी हुई थी ...
तो फिर
सांसे लेना बँद क्यूं न किया मजहब बांटने वालों ने
हवा तो हिन्दु-मुसलमान ना हुई थी ।