.....मन का .....
दिशाहीन दिशाएं पासे फेंकती हैं और बाँध लेती हैं मुझे अगणित रस्सियां
मेरे हाथ में तलवार है लेकिन बोध नहीं
रस्सियां काटना आत्मा काटने जैसा है
मेरा सिर धड़ से अलग हो चुका है
इसी मार्ग से ज्ञान प्रवेश करेगा लौ जलेगी और शरीर ढूंढेगा
नव चेतना