Thursday, August 25, 2016

अबूझ स्वप्न

दिशाहीन दिशाएं
पासे फेंकती हैं
और
बाँध लेती हैं मुझे
अगणित रस्सियां

मेरे हाथ में
तलवार है
लेकिन बोध नहीं

रस्सियां काटना
आत्मा काटने जैसा है

मेरा सिर
धड़ से अलग हो चुका है

इसी मार्ग से
ज्ञान प्रवेश करेगा
लौ जलेगी
और
शरीर ढूंढेगा

नव चेतना