Thursday, July 3, 2014

मुखौटे

मुझे ऊँचे तक पहुँचना था ।
सैंकङो सीढियाँ चढी
हजारों मुखौटे बदले मैनें

शीर्ष पर पहुँचने तक मेरा असली चेहरा लुप्त हो चुका था
और हजारों मुखौटे मिल कर उत्सव मना रहे थे
मेरे शीर्षासीन होने का !!

रोशनी

रात घनी और काली है
सूरज निगलने वाली है
तुम दिये से देहरी रोशन रखना

यहाँ सन्नाटो का बोझ पङा है
मुर्द सा होकर तन अकङा है
तुम जीवन सी लचक बनाये रखना

गर्दिशो के साये
सभी ओर छाये
उम्मीदों की नैया
भंवर में डगमगाये
तुम आशाओ की पतवार ले आगे बढना