आखिरी बार
जब तुम खिलखिलाई थी
वो लम्हा टांग दिया था दीवार पर
अब तुम्हे टकटकी लगाये देख रहे हैं
परदे सारे
इधर उधर बिखरी किताबें
कुछ कहना चाहती हैं
बेतरतीब सी टेबल
तुम्हे पकङकर
करीने से सजना चाहती हैं
कमरा
हैरान सा ताक रहा है
तुम जाने क्यूं
चुप और उदास हो
सुनो !
जब सब खत्म होता है
सब कुछ तब भी खत्म नहीं होता
खालीपन के टुकङे बचे रह जाते हैं
तुम अपना खालीपन समेटो
और मुस्कुराओ
क्यूकीं
तुम्हे
आवाज दे रहा है
दीवार पर टगां
खिलखिलाता लम्हा