लूट रहा आबरु,
बेच रहा ईमान है !
पैसों की खातिर जो,
लेता अपनों की भी जान है !
स्वार्थ के सिहांसन पर
बैठा है जो शख्स
,क्या वही आज का
इंसान है!
बेच रहा ईमान है !
पैसों की खातिर जो,
लेता अपनों की भी जान है !
स्वार्थ के सिहांसन पर
बैठा है जो शख्स
,क्या वही आज का
इंसान है!
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