Friday, February 27, 2015

विस्तार का भ्रम

बहुत विस्तृत है
अपने आदि- अन्त के माप से अनजान
आकाश
समुद्र
पर्वत
रेगिस्तान
और
इन्सान

और बहुत एकाकी भी

शायद
विस्तार एक भ्रम है

जो जितना समझता है "वृहत" स्वयं को
वो उतना ही " कम" है ।