बहुत विस्तृत है
अपने आदि- अन्त के माप से अनजान
आकाश
समुद्र
पर्वत
रेगिस्तान
और
इन्सान
और बहुत एकाकी भी
शायद
विस्तार एक भ्रम है
जो जितना समझता है "वृहत" स्वयं को
वो उतना ही " कम" है ।
अपने आदि- अन्त के माप से अनजान
आकाश
समुद्र
पर्वत
रेगिस्तान
और
इन्सान
और बहुत एकाकी भी
शायद
विस्तार एक भ्रम है
जो जितना समझता है "वृहत" स्वयं को
वो उतना ही " कम" है ।