Sunday, June 28, 2015

मेरे हिस्से की आग

मैं भी
एक सूरज
टांग दूं आकाश में

मेरे हिस्से की आग
फैंकने का मन है

मन है कि नदी बहे अनवरत अब
या बादल झरते रहे
 तितलियों से सुनकर कहानियाँ लिखूँ
और
पेड़ों को सुनाऊं
 
मन है कि
सब कुछ हो
 
बस मेरे हिस्से की आग न हो मेरे पास ।