"बच्चे तो ईश्वर का रूप होते है , अपने इश्वर से श्रम करवाओगे तो पाप के भागी बनोगे !
बचपन बोझ उठाने के लिए नहीं है !
बचपन बोझ उठाने के लिए नहीं है !
ये तो आसमान में पतंग उडाने, बारिश के पानी में कागज की नाव चलने के लिए है "
जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता नीलिमा जी ने कल शहर की बाल विकास समिति की अध्यक्ष के रूप में शपथ लेने के बाद अपना भारी भरकम भाषण इन पंक्तियों के साथ समाप्त किया तो पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा ! वे सुबह शपथ ग्रहण के बाद से ही काम में लग गई और ३८ बच्चो को मुक्त करवाया उन्होंने कहा बाल मजदूर रखने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जायेगी और इन बच्चों कि शिक्षा इत्यादि का पूरा प्रबंध किया जायेगा !"
सुबह सुबह चाय की चुस्कियो के साथ नीलिमाजी जी अखबार में अपने बारे में पढ़ रही थी कि तभी मोबाइल पर उनकी भाभी का फोन आया ! कुछ देर बात करने के बाद उन्होंने गंगा को आवाज दी और पुछा
"क्यों री गंगा संजू कितने बरस का हो गया ?
"मैडम १० का होगा मार्च में "
अरे वाह तब तो वो काफी बड़ा हो गया है, कल से उसे त्रिवेणी नगर में भाभीजी के यहाँ भेज देना , नौकर काम छोड़ कर चला गया है ! रहना खाना सब वही होगा संजू का "
"शुक्रिया मैडम " आपने उसे भी काम लगा दिया !
गंगा मैडम का गुणगान करने लगी !
नीलिमाजी फिर से अखबार में अपने बारे में खबर पढ़ने में व्यस्त हो गई जिसका शीर्षक था - "वत्सला " !
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