Saturday, October 3, 2015

रात

1)
वो चान्द नहीं था
रात के जिस्म पर अनचाहा धब्बा था
और तारे
सूरज को आरी से काट कर फैके गये टुकङे

-रात को तो बस अंधेरा ही सुहाता था

2)
रात ब्लैकहोल होती है
गिरते चले जाते हैं सब
खुद ही
खुद में ही

Thursday, August 27, 2015

रात का तीसरा पहर

रात के तीसरे पहर
वक्त को बांधने की कोशिश करती है
वो लङकी

वो
सन्नाटे की रस्सी बनाती है

और
झोला बुनती है
कविता का

वो चाहती है
तरतीबी से तह करना
जो हो चुका है उसे

और जो हो रहा है उसे भी

जो होने वाला है
उसे कैद कर झोले में
डालना चाहती है

लेकिन
रात का तीसरा पहर
कसकर
वक्त का हाथ पकङता है
और दौङ जाता है

वो लङकी
फिर
क्या रखती है
उस खाली झोले में

कभी तुम झांककर देखना

कभी तुम भी बुनना
झोला उसकी ही तरह

लेकिन हाँ

रात के तीसरे पहर ।

















Sunday, June 28, 2015

मेरे हिस्से की आग

मैं भी
एक सूरज
टांग दूं आकाश में

मेरे हिस्से की आग
फैंकने का मन है

मन है कि नदी बहे अनवरत अब
या बादल झरते रहे
 तितलियों से सुनकर कहानियाँ लिखूँ
और
पेड़ों को सुनाऊं
 
मन है कि
सब कुछ हो
 
बस मेरे हिस्से की आग न हो मेरे पास ।

Sunday, April 19, 2015

कागज

मैं
उलझनें अपनी
कागज़ पर दे मारती हूँ

कागज उलाहना नहीं देता
सहता है
कुछ नहीं कहता

-कितना आसान है
उलझन होना

-कितना मुश्किल है
कागज होना

Tuesday, March 24, 2015

मानवता

हम
लिबास की तरह
बदलते हैं
खुद को

पहनते हैं
रोज नया भ्रम कोई

स्वयं को छिपाने के प्रयास में
स्वयं से ।

हम
कई आवरणों में ढके

घुटते रहते हैं

और घुटन मिटाने को
फिर ओढ़ते हैं
आवरण नया

हम
भूल जाते हैं

सत्य पारदर्शी होता है

और
स्वयं के सत्य का बोध
"मानवता"




Monday, March 16, 2015

दीवारों के लोग

अब
घरों में लोग
दीवारों की तरह रहते हैं

मौन
भावहीन
कभी शुन्य
कभी परस्पर ताकते

संवाद से परे

बोझ ढोते
छत बचाने की कोशिश में
नींव गलाते लोग....

दीवारों की तरह रहते हैं घरों में अब ।

Wednesday, March 4, 2015

लौटा लो बचपन को

यादों की अलमारी खोलें
पीछे छूटा बचपन टटोलें

दौड़ लगायें जंगल पहुंचे
मोगली संग पेड़ों पर झूलें

होमवर्क की टेंशन छोड़े
पार्क में जाकर तितली छू लें

क्रिकेट का मतलब बैटिंग हो
पहली बॅाल" ट्राइ" वाली खेलें

तालाब में पत्थर फेंके
कंचें जीते अमीर हो लें

कॅापी में मिले गुड गिनें
रंग बिरगीं चॅाक चुरा लें

बेस्ट फ्रेंड की कट्टी पर
आंखे आंसुओं से भिगो लें

मम्मी का बर्थडे है
वाटर कलर से कार्ड बना लें

गर्मी वाली छुट्टी में
चम्पक, बालहंस वाला पिटारा खोलें

बेवजह हसें, पापा से पिटें
चोट लगे तो जोर से रो लें

चलो
अलमारी फिर से खोलें
बचपन याद रखें

बाकी सारी जिन्दगी भूलें