.....मन का .....
1) वो चान्द नहीं था रात के जिस्म पर अनचाहा धब्बा था और तारे सूरज को आरी से काट कर फैके गये टुकङे
-रात को तो बस अंधेरा ही सुहाता था
2) रात ब्लैकहोल होती है गिरते चले जाते हैं सब खुद ही खुद में ही
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