Saturday, October 3, 2015

रात

1)
वो चान्द नहीं था
रात के जिस्म पर अनचाहा धब्बा था
और तारे
सूरज को आरी से काट कर फैके गये टुकङे

-रात को तो बस अंधेरा ही सुहाता था

2)
रात ब्लैकहोल होती है
गिरते चले जाते हैं सब
खुद ही
खुद में ही

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