.....मन का .....
दिशाहीन दिशाएं पासे फेंकती हैं और बाँध लेती हैं मुझे अगणित रस्सियां
मेरे हाथ में तलवार है लेकिन बोध नहीं
रस्सियां काटना आत्मा काटने जैसा है
मेरा सिर धड़ से अलग हो चुका है
इसी मार्ग से ज्ञान प्रवेश करेगा लौ जलेगी और शरीर ढूंढेगा
नव चेतना
शानदार रचना.. आपको पढ़ना वाकई विचारों का नवसृजन है.. बहुत बधाई..
खूबसूरत रचना है डॉक्टर साहिबा श्वेता :)
असफलता नहीं थी वह चले जाना देखा फिर कुछ नया ले आयी आप
शानदार रचना.. आपको पढ़ना वाकई विचारों का नवसृजन है.. बहुत बधाई..
ReplyDeleteखूबसूरत रचना है डॉक्टर साहिबा श्वेता :)
ReplyDeleteअसफलता नहीं थी वह चले जाना देखा फिर कुछ नया ले आयी आप
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