गौर से सुनो
मुसीबतों की चट्टानें कहती हैं
हम कमजोर नहीं
लेकिन
तुम्हारी कोशिशों का पसीना
गला देता है हमें
और तुम
उस पसीने से धुलकर
निखरते हो
जैसे कोई नया पैदा हुआ बच्चा
हर कोशिश जन्म देती है
नया "स्वयं"
गौर से सुनो
मुसीबतों की चट्टानें जो कहती हैं
ऊर्जा का एक स्रोत जो आपकी रचनाओं से प्राप्त होता है, बादस्तूर जारी है.. ढेरों शुभकामनायें।
ReplyDelete'हमें' से आपने किसे सम्बोधित किया है (पहला पैरा, तीसरी लाइन; और दूसरा पैरा, तीसरी लाइन)? कविता का ख्याल बहुत अच्छा है। कुछ ऐसे, जैसे कहीं एकांत में स्वयं को पुनर्जीवित करने की कोशिश।
ReplyDeleteप्रशंसनीय, शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद राहुल जी, प्रद्युम्न्य त्यागी जी
ReplyDeleteयहां हमें जीवन की मुश्किलों को कहा है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है आपने....
ReplyDeleteशुक्रिया गुप्ताजी
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