Friday, October 23, 2015

योद्धा

वो जब भी कागज की नाव बनाते, बारिश हो जाती

वो जहां चलना चाहते, हवायें उस दिशा में चलने लगती

ठिठुरन भरी सर्दी में सूरज उनकी झोली में रहता

जेठ की तपती गर्मी में मृग मरीचिका सच में पानी हो जाती

पर्वत उनके लिये मुट्ठी भर रेत थी
समुद्र ओस की बून्दें
और गहरे, घने जंगल केसर के खेत

उन पर किसी मौसम का, किसी परिस्थिती का असर नहीं होता था

वो इन्सानों की बस्ती के योद्धा थे-
आत्मविश्वास, प्रेरणा, सत्य, दृढ निश्चय, परिश्रम ।

2 comments:

  1. मानवीय मूल्यों का वैयक्तिकरण व शाब्दिक चित्रण खूब बन पड़ा है.. इस तरह की शैली की आप उस्ताद हैं... लिखती रहिये.. बहुत शुभकामनायें ..

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  2. धन्यवाद । आपसे प्रशसां मिलना सदैव प्रोत्साहित करता है ।

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