Sunday, November 8, 2015

बचा हुआ कुछ

आखिरी बार
जब तुम खिलखिलाई थी
वो लम्हा टांग दिया था दीवार पर

अब तुम्हे टकटकी लगाये देख रहे हैं
परदे सारे

इधर उधर बिखरी किताबें
कुछ कहना चाहती हैं

बेतरतीब सी टेबल
तुम्हे पकङकर
करीने से सजना चाहती हैं

कमरा
हैरान सा ताक रहा है

तुम जाने क्यूं
चुप और उदास हो

सुनो !
जब सब खत्म होता है
सब कुछ तब भी खत्म नहीं होता
खालीपन के टुकङे बचे रह जाते हैं
तुम अपना खालीपन समेटो
और मुस्कुराओ

क्यूकीं

तुम्हे
आवाज दे रहा है
दीवार पर टगां
खिलखिलाता लम्हा

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