चला जा रहा था वो
दौड़ती हुई सड़क किनारे
हाथ में सफ़ेद लाठी लिए ....
खुली आँखों में बंद है आँखे उसकी
रौशनी में छुपे अँधेरे ही दिखते है उसे ...
कर रही होगी उसका इंतज़ार
सड़क के उस पार बैठी नन्ही उसकी ..
आज दिवाली को लायेंगे रौशनी का सामन बापू ...
सड़क पार जाने को
कुछ कदम वो बढाता है ..
एक दो आवाज आने जाने वालो को देता है ..
शायद कोई ले जाये उस पार ..
अनसुनी आवाज साथ लेकर
चल पड़ा खुद ही ..
लेकिन बीच में ही टक्कर से उछल कर
पहुँच गया उस पार ..
जहाँ से नही आ पायेगा वो इस पार कभी ..
क्यों कि ..
सड़क पर चलने वाले "नेत्रहीनों" कि कमी नहीं .....
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