Thursday, October 10, 2013

शब्दों के कोलाहल में , तुम्हारा मौन सुनाई देता है ..



हलचल है हर तरफ
हर तरफ अजीब सा शोर है ...
मैं झाँकू खुद के ही मन में
लगता  है वो कोई और है ..
सुबह को  जागू जब मुझे
ये  दिन अब खाली  लगता है ..
तूफ़ान ह्रदय का भीतर को
बाहर आने को मचलता है ..
यादों  का चलचित्र फिर ,नैनों में दिखाई देता है ..

शब्दों  के कोलाहल में , तुम्हारा मौन सुनाई देता है ..



मेरी  दोपहर अब कुछ भारी भारी लगती है ..
उठती है हुक कैसी  अजब बीमारी लगती है
दर्द सारा जब मेरी आखों से छलकता है
मेरे संग तब मेरा एक आइना बिलखता है ..
ये बहता गीला समंदर
हर वक्त दुहाई देता है ..
शब्दों  के कोलाहल में , तुम्हारा मौन सुनाई देता है ..


शाम  तो बीती ढलता दिन देखकर
रात धीरे से उगती है ...
बिना कहे कुछ चले गए क्यों तुम
ये बात शूल सी चुभती है ...
तुझसे  बंधी ये प्रीत छुडा लु
खुद को मैं फिर पीछे बुला लु ..
ये सब करने कि पर मुझको ..
न वक्त रिहाई देता है ....

शब्दों  के कोलाहल में , तुम्हारा मौन सुनाई देता है ..



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