मैं भी
एक सूरज
टांग दूं आकाश में
मेरे हिस्से की आग
फैंकने का मन है
एक सूरज
टांग दूं आकाश में
मेरे हिस्से की आग
फैंकने का मन है
मन है कि नदी बहे अनवरत अब
या बादल झरते रहे
तितलियों से सुनकर कहानियाँ लिखूँ
और
पेड़ों को सुनाऊं
मन है कि
सब कुछ हो
बस मेरे हिस्से की आग न हो मेरे पास ।
जो ठण्डक आपके शब्द पढ़कर पड़ती है, वह कहीं और नहीं। इन्हीं अनकही प्रशंसाओं को लिए यहां तक आ पहुंचा। ईश्वर करे आप ऐसा ही लिखती रहें। शुभकामनायें।
ReplyDeleteaah kamaal likhte hain aap
ReplyDeleteaah kamaal likhte hain aap
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