Monday, March 16, 2015

दीवारों के लोग

अब
घरों में लोग
दीवारों की तरह रहते हैं

मौन
भावहीन
कभी शुन्य
कभी परस्पर ताकते

संवाद से परे

बोझ ढोते
छत बचाने की कोशिश में
नींव गलाते लोग....

दीवारों की तरह रहते हैं घरों में अब ।

2 comments:

  1. सत्य। बढ़ता भौतिकवाद और परस्पर स्नेह की जगह जिस तरह प्रतिस्पर्द्धाओं ने ली है, उससे यही हुआ जो ऊपर वर्णित है। यथार्थ का चित्रण। खूब।

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