.....मन का .....
अब घरों में लोग दीवारों की तरह रहते हैं
मौन भावहीन कभी शुन्य कभी परस्पर ताकते
संवाद से परे
बोझ ढोते छत बचाने की कोशिश में नींव गलाते लोग....
दीवारों की तरह रहते हैं घरों में अब ।
Nice work :-)
सत्य। बढ़ता भौतिकवाद और परस्पर स्नेह की जगह जिस तरह प्रतिस्पर्द्धाओं ने ली है, उससे यही हुआ जो ऊपर वर्णित है। यथार्थ का चित्रण। खूब।
Nice work :-)
ReplyDeleteसत्य। बढ़ता भौतिकवाद और परस्पर स्नेह की जगह जिस तरह प्रतिस्पर्द्धाओं ने ली है, उससे यही हुआ जो ऊपर वर्णित है। यथार्थ का चित्रण। खूब।
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