Thursday, November 7, 2013

जो दिख रहा है वो आभासी है

जैसे पृथ्वी  को आकाश  ओढ़े
तुमने मुझे घेर रखा है 
देखने में लगता है मिले हो तुम मुझमे
जरा  सा आगे चलू तो
छू लूंगी उस क्षितिज को
और पा लूंगी तुम्हे ....
लेकिन  अंनत है ये यात्रा
इस सफर की केवल' शुरुआत' ही है
भूल गए हैं इश्वर इसकी मंजिल बनाना ...
छोर  पाने की कोशिश में
चाहे में चढूँ कितनी ही सीढ़ियाँ..
लेकिन नहीं पहुँच पाऊँगी तुम्हारी छत तक

क्यों की

धरती को ढके ये अम्बर
आभासी ही तो है ....











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