जैसे पृथ्वी को आकाश ओढ़े
तुमने मुझे घेर रखा है
देखने में लगता है मिले हो तुम मुझमे
जरा सा आगे चलू तो
छू लूंगी उस क्षितिज को
और पा लूंगी तुम्हे ....
लेकिन अंनत है ये यात्रा
इस सफर की केवल' शुरुआत' ही है
भूल गए हैं इश्वर इसकी मंजिल बनाना ...
छोर पाने की कोशिश में
चाहे में चढूँ कितनी ही सीढ़ियाँ..
लेकिन नहीं पहुँच पाऊँगी तुम्हारी छत तक
क्यों की
धरती को ढके ये अम्बर
आभासी ही तो है ....
तुमने मुझे घेर रखा है
देखने में लगता है मिले हो तुम मुझमे
जरा सा आगे चलू तो
छू लूंगी उस क्षितिज को
और पा लूंगी तुम्हे ....
लेकिन अंनत है ये यात्रा
इस सफर की केवल' शुरुआत' ही है
भूल गए हैं इश्वर इसकी मंजिल बनाना ...
छोर पाने की कोशिश में
चाहे में चढूँ कितनी ही सीढ़ियाँ..
लेकिन नहीं पहुँच पाऊँगी तुम्हारी छत तक
क्यों की
धरती को ढके ये अम्बर
आभासी ही तो है ....
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