सातवीं मंजिल की
बालकनी से होकर
दबे पांव चला आता है
धूप का एक टुकङा
और
छू कर देखता है
डाइनिंग पर पङी आधी भरी प्लेट को
फिर
जरा दायें सरक कर
सुखा देता है
कुर्सी पर बेतरतीब पङा
गीला तौलिया
और
पोंछ देता है
ग्लास से छलका पानी
सब दिन
ताकता रहता है
भरे हुए खाली घर को
फिर
जाते जाते चूम लेता है
दीवार पर टंगी उसकी तस्वीर
मां अब
ऐसे ही मिलती है उससे
धूप का टुकङा बनकर
maa har roz ati rahe...
ReplyDeleteStunning and speechless. Aap khud likhthi hain ??Lekin jo bhi h jabarjast h. Maine aaj tak aise vichar nahi padhe kahin. Simply Magnanimous...
ReplyDeletewaah outstanding.....
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