.....मन का .....
मैं उलझनें अपनी कागज़ पर दे मारती हूँ
कागज उलाहना नहीं देता सहता है कुछ नहीं कहता
-कितना आसान है उलझन होना
-कितना मुश्किल है कागज होना
बहुत मुश्किल है कागज़ होना। अद्भुत मानवीकरण। शुभकामनायें।
आपकी यह कविता मुझको सबसे प्रिय है shweta di
बहुत मुश्किल है कागज़ होना। अद्भुत मानवीकरण। शुभकामनायें।
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