Sunday, May 25, 2014

आशय

उलट चुकी इस सृष्टि में
आकाश जहां पृथ्वी हुआ है
और पृथ्वी ने आकाश को
विस्थापित किया है
वृक्ष पत्तों से बढने लगें हैं
जङों पर फल-फूल उगने लगें है
उथले-पुथले से ब्रम्हाण्ड में
हम वहीं टिके हैं
अपने होने का आशय खोजते ।

2 comments:

  1. उथले-पुथले से ब्रम्हाण्ड में
    हम वहीं टिके हैं
    अपने होने का आशय खोजते ।
    … हम और क्या कर रही है …ब्रम्हाण्ड का संतुलन बिगाड़ने में लगे है। .
    बहुत बढ़िया विचारशील रचना

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