उलट चुकी इस सृष्टि में
आकाश जहां पृथ्वी हुआ है
और पृथ्वी ने आकाश को
विस्थापित किया है
वृक्ष पत्तों से बढने लगें हैं
जङों पर फल-फूल उगने लगें है
उथले-पुथले से ब्रम्हाण्ड में
हम वहीं टिके हैं
अपने होने का आशय खोजते ।
उथले-पुथले से ब्रम्हाण्ड में हम वहीं टिके हैं अपने होने का आशय खोजते । … हम और क्या कर रही है …ब्रम्हाण्ड का संतुलन बिगाड़ने में लगे है। . बहुत बढ़िया विचारशील रचना
उथले-पुथले से ब्रम्हाण्ड में
ReplyDeleteहम वहीं टिके हैं
अपने होने का आशय खोजते ।
… हम और क्या कर रही है …ब्रम्हाण्ड का संतुलन बिगाड़ने में लगे है। .
बहुत बढ़िया विचारशील रचना
कोटि धन्यवाद आपका
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