.....मन का .....
मुझे ऊँचे तक पहुँचना था । सैंकङो सीढियाँ चढी हजारों मुखौटे बदले मैनें
शीर्ष पर पहुँचने तक मेरा असली चेहरा लुप्त हो चुका था और हजारों मुखौटे मिल कर उत्सव मना रहे थे मेरे शीर्षासीन होने का !!
वाह अद्भुत।
वाह अद्भुत।
ReplyDelete